बप्पा रावल को बाण माताजी का आशीर्वाद
राजस्थान के इतिहास में मेवाड़ का गुहिल राजवंश अपने शौर्य पराक्रम
कर्तव्यनिष्ठा, और धर्म पर अटल रहने वाले 36 राजवंशों में से एक है । गुहिल
के वंश क्रम में भोज, महेंद्रनाग, शीलादित्य, अपराजित महेंद्र द्वितीय एवं
कालाभोज हुए । आठवी शताब्दी में कालाभोज ने मेवाड़ राज्य की स्थापना की जो इतिहास में बापा रावल के नाम से प्रसिद्ध हुए । वह माँ बायण के
अन्नयः भक्त थे ।
बायणमाता गुहिल राजवंश ही नहीं इस राजवंश से निकली दूसरी शाखा सिसोदियां और
उनकी उपशाखाओं की भी कुलदेवी रही है । कालाभोज बापा रावल के बाद खुम्माण गद्दी पर बैठे , जिनका नाम मेवाड़ के इतिहास में प्रसिद्ध है। खुम्माण ने 24 युद्ध किये और वि. स. 869 से 893 तक राज्य किया । दलपति विजय कृत खुम्माण रसों में
माँ बायण की बापा रावल पर विशेष कृपा का उल्लेख मिलता है – श्री बायण भगवती, भाय पूज्यां भय हरंती ।
चढ़े सिंध विचरंती, मात मुज मया करंती ॥
कालिका न झबुक्क, ज्योति काया जलहलती
सषीनाथ साबती, षलां दलती षल हलती ॥
हसंती रमंती गहक्कती, गहलोत वंश वधारती ।
सु प्रसन्न माय ए तो सदा, सघला काज सुधारती ॥
भाव सहित अर्चना करने पर भगवती बायणमाता भय से मुक्ति दिलाती
है । वह सिंह की पीठ पर सवार होकर विचरण करती है । माता बायण मुझ पर दया
करती है । कालिकादेवी काली होने से प्रकाशरहित होती है, पर उसके शरीर से
ज्योति (प्रकाश) झिल मिलता रहता है । वह अखण्ड (शाश्वत) मित्र है, अग्नि
रूप है,शत्रुओं का सर्वनाश करती है । हंसती खेलती, किलकारी करती हुई गहलोत
वंश की वृद्धि (उन्नति) करती है । प्रसन्न होने पर यह माता सदा सभी कार्यों
को सानन्द सम्पन्न करती है ।
कूंत षग्ग कोमंड, बाण तरगस्स बगस्सें ।
कुंठ ढाल कट्टार, तिण रिस्म थाट तरस्सें ॥
जालिम जांणें जोध, आप आवध बंधावें ।
ग्रहि भुजकरि मजबूत, माय मोतियाँ बधावें ॥
श्री हत्थ तिलक जस रो करें । माथ पुत्र मोटो करे ।
भाले, तलवार, धनुष बाण, तरकस प्रदान किये । कमठ (कछुवे की पीठ से बनी) ढाल कमा और कटार जो शत्रु समूह को काटती है, बापा को वीर योद्धा जान कर देवी ने अपने हाथों से धारण कराया । उसकी बाह पकड़कर शक्ति दान करते हुए माता ने उसका मोतियों से वर्धापन किया । अर्थात उसको राजा बनाया अपने हाथ से तिलक लगाकर माँ बायण ने अपने पुत्र को बड़ा (महान) बनाया और शक्ति के द्वारा दिया हुआ भूमि का भार सामंत बापा ने भुजा पर धारण किया ।भूमि रो भार बापा भुजें । सगति रो दिध सामंत रें ॥
© मयूराज सिंह चूंडावत, डूंगरपुर
और पढ़े ..... मुख्य पृष्ठ

No comments:
Post a Comment