बायण माताजी
बायण माताजी का विश्व प्रसिद्ध मंदिर चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित है । बाण माताजी मेवाड़ से जुड़े हुए ठिकानों जैसे सलुम्बर , बांसी , आमेट , बेंगु , खुराबड, कानोर में कुलदेवी व संरक्षक देवी के रूप में पूजा जाता है ।
मेवाड़ के सिसोदिया अपने शासनकाल में अम्बा माताजी की पूजा करते थे , जो बाद में कलिका माताजी के नाम से पूजी जाने लगी । जहा पर चित्तौड में कलिका माताजी का मंदिर अभी मौजूद है । कलिका माताजी के मंदिर के पास ही बाण माताजी , अन्नपूर्णा माताजी व तुलजा भवानी का मंदिर स्थित है । यदि इतिहास के पन्नों को पलट कर देखा जाये तो कालिका माताजी की स्थापना 7 वी शताब्दी में बप्पा रावल के द्वारा की गईं थी । बाण माताजी की स्थापना भी 7 वी शताब्दी में बप्पा रावल के द्वारा की गईं थी । अन्नपूर्णा माताजी की स्थापना 13वी शताब्दी में महाराणा हमीर के द्वारा की गयी थी । एवं तुलजा भवानी की स्थापना 15 वी शताब्दी में बनवीर के द्वारा की गयी थी । इन मंदिरों के स्थापना का इतिहास भी बड़ा दिलचस्प है ।
बाण माताजी को अलग- अलग क्षेत्रों में अलग - अलग नामो जैसे बाण , बायण , बेण , बाणेश्वरी , बायणेश्वरी , ब्राह्मणी,वरदायिनी व कन्या कुमारी के नाम से जाना जाता है ।वही मातेश्वरी की अलग - अलग स्थानों पर अलग - अलग सवारिया है जैसे माताजी के मुख्य पाट स्थान चित्तोड़ में हंस की सवारी है जिससे मातेश्वरी को हंसवाहिनी के नाम से जाना जाता है । सलूम्बर राजमहल में विरामान बायण माताजी सहित कई मंदिरों में शेर की सवारी है । सलुम्बर राजमहल में विराजमान बायण माताजी को शेर सवारी होने से युध्य की देवी के रूप में पूजा जाता है । यही कारण है की सलुम्बर के चूंडावत कई युध्यो के में अपनी वीरता व बलिदान का लोहा मनवा चुके है , व मेवाड़ की सेना में उन्हें हरावल में लड़ने का विशेषाधिकार प्राप्त था । प्रतापगढ़ में स्थित बाण माताजी की अश्व (गोडे ) की सवारी है व केलवाडा (कुम्भलगढ़) में स्थित बाण माताजी का मंदिर जिसकी स्थापना महाराणा हमीर ने की थी में भी माताजी की अश्व सiवारी है । देचू स्थित 300 साल पूर्व निर्मित मंदिर में श्री बाण माताजी भैंसे पर सवार होकर बिस भुजा धारण किए हुए हैं ।सिलोईया सिरोही स्थित बाण माताजी हाथी पर सवार है । इस प्रकार माताजी की महिमा का गुणगान करना बहुत ही आनन्द प्रकट करता है । कोई भी भक्त अनुमान नही लगा सकता कि एक देवी इतनी सवारी धारण कर सकती हैं
जिससे बायण माताजी की पहचान को लेकर भक्त भ्रमित हो जाते है । वही बाण माताजी अलग- अलग स्थानों पर अलग- अलग भुजाओ के साथ विराजमान है, माताजी ने अलग - अलग मंदिरों में अष्ट भुज, षष्टभुज , चतुर्भुज व बीस भुजाओ के साथ विराजमान है ।
बाण माताजी का पुराना स्थान गिरनार ( गुजरात) में था लेकिन प्राचीनकाल में चित्तौड के महाराणा ने गुजरात के राजा पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया व महाराणा ने शर्त रखी की वे अपनी राजकुमारी का विवाह महाराणा से कर दे । राजकुमारी बाण माताजी की परम भक्त थी और वह महाराणा से विवाह रचाना चाहती थी तो माताजी की कृपा से राजकुमारी का विवाह महाराणा से हो गया । जिससे बाण माताजी गिरनार को छोड कर राजकुमारी के साथ चित्तोडगढ पधार गये । हालाकि गिरनार में भी अभी बाण माताजी का मन्दिर मौजूद है ।
©मयूराज सिंह चूंडावत, डूंगरपुर

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